Saturday, August 24, 2024

बॉलीवुड संगीत : कल और आज

 बॉलीवुड संगीत : कल और आज

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हिंदी सिनेमा और उसके गीत संगीत दोनो का अटूट रिश्ता वर्षो पुराना है l एक वो ज़माना था जब  फिल्मों में 10 से 15 गानो का  होना एक आम बात होती थी उसी दौर में कुछ ऐसी फिल्म भी आईं जिनमे उसकी पूरी कहानी बयां करने के लिए एक लंबा सा गीत तैयार किया जाता था l studio में musicians का जमावड़ा होता था l Take  re take होते होते काफी समय बाद recording पूरी होती थी l उन दिनों गाने की recording tape में होती थी l इसे स्पूल रिकॉर्डिंग भी कहते थे l

धीरे धीरे संगीत का रूप बदलता गया l लाइव रिकॉर्डिंग का स्थान कंप्यूटर ने ले लिया l 4 ट्रैक 8 ट्रैक की जगह मल्टी ट्रैक ने ले लिया l

Musicians की भीड़ खत्म हो गई अब उस स्थान पर चंद म्यूजिशियन नजर आते है जो एक ही धुन को कई बार बजाते है और उन्हें अलग अलग layer में रिकॉर्डिस्ट  सजाते है जिससे कि एक वाद्य यंत्र सुन ऐसा लगे  जैसे एक साथ दस बीस instruments बज रहे हों l

बेशक आज की technique पहले से बहुत ज्यादा उन्नत है उसका प्रमाण आज की audio quality से ही लग जाता है लेकिन इसके बावजूद कई ऐसी बातें है जो पुराने गीत संगीत को आज के मुकाबले बीस साबित करते थे l इनमे सबसे प्रमुख बात, गीतों के बोल और उसकी धुन जो एक अद्भुत  मिठास लिए होते थे l यह मिठास आज के गीत संगीत में कहीं फीकी से पड़ने  लगी है l आज अधिकतर गायकी का ढंग पाश्चात्य अंदाज में होने लगा है यही वजह है कि गीत संगीत हिट तो हो रहे हैं पर लंबे समय तक टिकने की काबिलियत खोते जा रहे हैं l

एक खास बात ये भी है कि पुराने दिनों में निर्माता और संगीतकार गायक गायिका का चुनाव करने से पहले ये पता लगाते थे कि , फिल्म में कलाकार कौन है ? अगर नायक अमिताभ या राजेश खन्ना हों तो किशोर कुमार को सबसे उपयुक्त माना जाता था इसी तरह राजेंद्र कुमार के लिए रफी, राजकपूर के लिए मुकेश,कुमार गौरव के लिए अमित कुमार,सन्नी के लिए शब्बीर कुमार,आमिर के लिए उदित आदि l इस चयन  का असर पर्दे पर भी खूब दिखता था l आज भी खाई के पान और ई है बंबई नगरिया जैसे गीतों को सुन यही महसूस होता है कि इस किशोरदा ने नही बल्कि खुद अमिताभ ने गाया हो ,ठीक इसी तरह राज कपूर के लिए मुकेश के गाए गीतों को सुनकर लगता था l लेकिन आज फिल्म का नायक पहला गाना अरिजित की आवाज में गाता है तो दूसरा हिमेश की आवाज में तीसरा किसी और की ... l 

कहने का तात्पर्य आज गाने सिर्फ ऑडियो प्लेटफार्म के लिए ही बनते हैं तभी तो कलाकारों की आवाज से मिलान आज जरूरी नहीं समझा जाता l इसका सबसे बड़ा बैक ड्रॉप यही कि कहीं से भी महसूस नहीं होता कि ये गाना वही कलाकार गा रहा है  जिसपे ये फिल्माया गया हो l

अभी बातें और भी हैं जो अगली मुलाकात में कहूंगा आज के लिए बस इतना ही l

***सुभाष बोस

 

नाम प्रभु का भज ले  बंदे

जीवन रह गया थोड़ा रे

सरपट सरपट भागा जाए

ये है समय का घोड़ा रे

१)काम आज का

 कल पे जो छोड़े

वो न कल कभी पाता है

पछताए फिर लाख बाद में

बीता वक्त न आता है

हाथ नहीं कुछ लगता उसको

मृगतृष्णा में जो दौड़ा रे

सरपट सरपट भागा जाए

ये है समय का घोड़ा रे

2)नाम कमाना बड़ा कठिन है

नाम गंवाना हैं आसान

नही किसी की बद दुआ लो

गलत करो न कोई काम

याद करें जग जिसने खुद को

सत्कर्मों से जोड़ा रे

सरपट सरपट भागा जाए

ये है समय का घोड़ा रे

- सुभाष बोस


 

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